Sunday 31 January 2016

उस रात...

मेरी कलाई घडी रात का एक बजा रही थी। जो दिसंबर की इस सर्द रात के लिए वैचारिक थी। झींगुर अपने रहस्यमयी संगीत में व्यस्त थे। वो अजीब संगीत जो एक ही पल आनंदमयी और दूसरे ही पल भय पैदा कर रहा था। हवा, चेहरे को किसी बर्फ के टुकड़े की तरह स्पर्श कर रही थी। मैं इस सुनसान बस स्टैंड पर अकेले नही ठिठुर रहा होता यदि मैं शैलेन्द्र की बात मान लेता। उसने कहा भी था 'अभि! मैं तुझे घर तक ड्राप कर देता हूँ।' उसने एक अच्छे दोस्त होने का कर्तव्य निभाया।
'नही..नही इट्स ओके!' मैंने कहा। जबकि मैं उसे व्यर्थ तकलीफ नही देना चाहता था।
आखिर आज उसकी बहन की शादी हुई थी..हजारों काम थे उसे। मुझे अभी दस मिनट ही हुए थे..बस का इंतज़ार करते हुए। यहां मेरे और इस सोते हुए कुपोषित कुत्ते के अतरिक्त कोई नही था। वाहन तो आ जा रहे थे इस रास्ते पर। लेकिन पैदल व्यक्ति नदारद थे। मैंने अपनी जेब से गोल्ड फ्लैक सिगरेट की डिब्बी निकाली, जिसमे बची दो सिगरेटें मुझे पुरानी प्रेमिका की तरह देख रही थी। एक को खींचकर मैंने होटो के बीच दबा लिया व अन्य जेबो में लाइटर टटोला। वो मेरे कोट के बायीं आंतरिक जेब में छिप रहा था जिसमे मैंने अपनी गर्लफ्रेंड ' सिम्मी' के लिए हीरे की अंगूठी रखी थी। लाइटर अपनी गन्दी आदत के अनुसार चार पांच बार में ज्वलंत हुआ। मैंने सिगरेट का लंबा कश लिया। और अंगूठी वाला लाल बक्श बाहर निकाला, पुली दबाई और बक्से के मुँह खुल गया।
'वाओ! कितनी सुंदर है ये..शादी के लिए तुम मुझे इसी से प्रोपोज़ करना!' ये सिम्मी ने तब कहा जब इसे मॉल में देखा था। कल मैं उसके सामने शादी का प्रस्ताव रखने वाला था। अंगूठी देखते ही उछल जायेगी वह.. ये सोचकर मैं मुस्काया। वैसे भी पचास हजार रूपये की अंगूठी देखकर तो किसी की भी मुस्कुराहट निकल जायेगी। मकान मालिक ने बड़ी मुश्किल से तीन रुपए प्रति सैकड़ा ब्याज पर दिए थे।
'ब्याज टाइम से देना.. बता रहा हूँ.. किराये की तरह लेट मत करना' मकान मालिक ने कहा था। बात भी सही थी एक बेरोजगार पर कोई क्यों भरोसा करेगा।
मैं अंगूठी के चमकते हीरे पर उंगली फेरने लगा। अगर उस लड़की ने शिकायत नही की होती तो आज मेरी जॉब होती। मैंने सिर्फ उसकी टांगो को ही तो देखा था और उसमे भी मेरी क्या गलती..जब कोई छोटी स्कर्ट पहन के आएगी तो नज़र तो जायेगी ही जबकि किसी अन्य लड़की ने तो कभी शिकायत नही की।
'लाइटर है?' अचानक एक अजनबी व्यक्ति ने पूछा। उसने बीड़ी मुह में दबा रखी थी।
"नही है।" मैंने कहा। वह माथा सिकोड़कर चला गया, शायद उसने मेरी जली सिगरेट से अनुमान लगा लिया था कि लाइटर मैंने जानबूझकर नही दिया।
सिम्मी से मेरी शादी होनी जरुरी थी..क्योकि वो एक जॉब वाली लड़की थी.. और उसके पापा की भी तो चांदनी चौक में बड़ी दुकान थी। तो अच्छा दहेज मिलना भी निश्चित था।
'आईईईईईई' जाने कब सिगरेट खत्म हो गयी और मेरी उंगलियो तक पहुँच गयी मुझे पता ही नही चला। वैसे सिम्मी ने कहा भी था सिगरेट छोड़ने के लिए, इसलिए मैं अब उसके सामने नही पीता।
कल मुझे डर है सिम्मी कहीं इंकार ना कर दे। क्योंकि यदि उसने मना कर दिया तो मैं संकट में आ जाऊंगा। पांच महीने से किराया भी नही दिया..ऊपर से अब ये 3 प्रतिशत का ब्याज और हाँ गौरव के भी ले रखे हैं 15000...और वो कमेटी वाला शाबिद तो सही आदमी भी नही है। उसके तो 40000 का ब्याज भी नही दिया है दो महीने से।
वैसे भी अब सिम्मी क्यों मना करेगी। मैंने तो माफ़ी भी मांग ली थी जब उसने मुझे नीरू के साथ देखा था रेस्टोरेंट में बल्कि अब तो सभी लड़कियो के नंबर भी डिलीट कर दिए थे मैंने उसी के सामने। और मैं प्यार भी तो करता हूँ उससे।
'मेट्रो स्टेशन कितनी दूर है यहां से' अचानक एक लड़की की कोमल सी आवाज़ ने मुझे विचारो के मंथन से बाहर निकाला।
'वाओ!' मैंने वाओ को बाहर नही आने दिया। चमकती आँखे...रंग थोडा सांवला परंतु आकर्षक मुख. होठ सुर्ख लाल कुछ गीले से, फिरोज़ी साडी पर मेहरून स्वेटर के नीचे के अंतिम दो बटन खुले ही थे..जिसमे से नाभि के आस पास का कुछ चबूतरा झाँक रहा था. "ऊऊऊ.. " उस हिस्से को देखकर मैंने अंदर ही बोल लिया।
"हाँ आधा किलोमीटर है" मैंने कहा "देख लीजिये कोई ऑटो वाला आ जाए तो"
बिना थैंक्स कहे वह सामान्य प्रतिक्रिया देकर सात-आठ कदम की दूरी पर खड़ी हो गयी। मैंने सिगरेट गिराकर जूते की की नोक से मसल दी। रात के एक बजे अकेली लड़की.. वेश्या होगी..परंतु लग तो नही रही थी या शादी में से आई होगी मेरी तरह..परंतु शादी में तो लडकिया किसी पुरुष के साथ ही आती है. .. तो क्या हुआ अब तो जमाना बदल चुका है। अकेले भी हो सकती है।
इसकी सुरक्षा मेरा फर्ज़ बनता है। कुछ गलत लड़के-वडके आ गए तो और वैसे भी इतनी सुन्दर है..किसी और के लिए क्यों छोडूँ.
'वैसे मैं भी मेट्रो तक जा रहा था..आप चाहो तो मेरे साथ चल सकती हो.' मैंने थोडा करीब जा कर कहा 'इतनी रात गए शायद ही कोई ऑटो आये'
उसने कुछ वैचारिक आँखों से देखा मुझे और स्वेटर का ऊपरी एक बटन को खोलते हुए कहा 'चलो!'
मैं मन ही मन खुश हुआ। लगता है बात बन गयी। 'आप क्यों हो यहाँ इतनी रात गए" उसने बैग से स्कार्फ निकलते हुए पूछा।
"शादी में से आ रहा हूँ।' मैंने उसके गर्दन के से नीचे के तिल को देखते हुए बताया "और आप?"
'मैं भी' उसने हल्का सा मुस्कुरा के कहा।
"अकेले??"
बिना कोई जवाब दिए उसने बैग से लिपस्टिक निकली और होटो पर फिराई..फिर अचानक कहा।
'2000 रुपए लुंगी' उसने बालो में से क्लिप निकली और बाल खोल लिए.
'किस...किस लिए' मैंने कहा..क्योकि मैं पूरी तरह पुष्टी करना चाह रहा था कि जो मैं सोच रहा हूँ ये वही कह रही ह या नही।
'हा हा हा' वो खुल के हंसी।' यह पास में एक खाली जगह है..वह कोई नही आता।' उसने तर्जनी से सामने की दिशा में इशारा किया।
मेरे रोंगटे लगभग खड़े हो गए....मेरे मन में सिम्मी का ख्याल जगमगाने लगा। मैं उसके प्रति ईमानदार रहना चाहता था। परंतु यदि मैं कर भी लू तो उसे क्या पता चलेगा...वैसे भी ये शादी से पहले आखिरी बार तो होगा ही..और इतनी ख़ूबसूरत वेश्या मिलती है क्या कहीं....वैसे मैं पहले भी सोया हूँ दो बार वेश्याओ के साथ परंतु वे तो बिल्कुल आंटी की तरह ही दिखती थी। और केवल 2000 ही तो मांग रही है...माँ को अगले महीने ज्यादा पैसे भेज दूंगा इस बार वे 1000 से काम चला लेंगी और हर बार तो 3000 भेजता ही हूँ इस बार कम भेज दूंगा तो क्या हो जायेगा।
'चलना है तो बोलो ...टाइम खराब न करो मेरा' उसने बालो को दोबारा बांधते हुए कहा। वो पूरी तरह आस्था चैनल से ऍम टीवी में परिवर्तित हो चुकी थी।
'पैसे बाद में दूंगा' मैंने कहा.
'नही.. आधे अभी आधे काम होने के बाद' उसने पुरानी फ़िल्म का डायलॉग मारा।
"बाकी बाद में" मैंने उसे 1000 का नोट देते हुए कहा।
लगभग 3 मिनट चलने के पश्चात कुछ जर्जर सी दुकाने दिखी जो झाड़ियो में छिपी हुई थी।
'इसमें?' मैं चोंका जबकि अन्य वेश्यायें तो होटल में ले गयी थी। बल्कि होटल वाला उन्हें जानता भी था। पर जाने दो इसकी सुंदरता इतनी अधिक थी कि इस सब से कोई फर्क नही पड़ता।
''यहां कोई आएगा तो नही' जब हम उन जर्जर दुकानों में से एक में घुसे, मैंने कोट उतारते हुए पूछा।
'नही..यहाँ कोई नही आता' ये आवाज़ मेरे पीछे से आई थी और ये उसकी नही..बल्कि एक पुरुष की आवाज़ थी। कमर में भी कुछ चुभ रहा था।
'ओह नो!' जब मैंने गर्दन घुमाई तो मेरे मुँह से अनायास ही निकल गया। मेरे पीछे दो आदमी खड़े थे। एक के हाथ में चाकू मुझे दिख रहा था।जबकि दूसरे ने मेरी कमर में लगा रखा था। जो कि मुझे चुभ रहा था
इस बारे में मुझे शैलेन्द्र ने कहा भी था 'ध्यान से जाना बस स्टैंड के पास लूट-पाट हो जाती है।' ये बात मुझे अब ध्यान आई थी.
'लाइटर है?' उस लड़की ने दबंगई से पुछा..उसने सिगरेट होटो में दबाई हुई थी। उसकी प्रतिक्रिया अभ्यस्त थी।
'हाँ कोट की जेब में' मैंने घबराहट में कहा..'ओह सिट' उसी जेब में तो मेरी अंगूठी थी।
"नही है..नही है!" ये मैं पहले कह देता तो ज्यादा ठीक रहता।
'तो अपनी सिगरेट तूने क्या अपने तोते से जलायी थी?' उसने कोट की जेब टटोलते हुए कहा। वे मेरा अवलोकन पहले से ही कर रहे थे। उसके इस वाक्य से मुझे ज्ञात हुआ।
'तुम्हे जो चाहिए ले लो और मुझे जाने दो' मैंने मिथ्या आत्मविश्वास दिखाने का प्रयत्न किया। मैंने पीछे की जेब से अपना पर्स निकालकर देते हुए कहा।
'फ़ोन भी निकाल!' पीछे वाले ने पर्स झपटा।
'ओ बेटे' लड़की के मुख से निकला जब उसके हाथ वो लाल बक्सा लगा। लड़की का और बक्से का दोनों का मुँह बराबर खुला था।
'असली है या नकली? ' उस लड़की ने अपनी उंगली में पहनकर उस पर हाथ फेरते हुए पुछा।
'नकली' मैंने उन्हें बेवकूफ बनाने की कोशिश की...
'हा हा हा!' तीनो एक साथ हंसे और उन्होंने मुझे बेवकूफ घोषित कर दिया।
'देख ..कुछ और तो नही है इसके पास' पीछे वाले ने मेरे सर पे थप्पड़ मारा। तब तीसरे वाले ने मुझे पूरा टटोला..दो सेंटर फ्रेश और एक रुमाल के अतरिक्त कुछ नही मिला। लड़की ने भी पूरा कोट टटोला..परंतु कोई अपेक्षित सामान नही मिला।
'इसे मार दो और जल्दी निकल आओ' लड़की ने मेरा कोट व लाल बक्शा फेंका और कहती हुई बाहर चली गयी।
'नही..सुनो' मैं चीखा। परंतु वो जा चुकी थी।
'इससे क्या करोगे?' मैंने तीसरे से पूछा जब उसे एक काले कपडे की तय लगाते देखा। बिना कुछ कहे वह कपडे को मेरे मुँह पर बांधने लगा।
'भागो जल्दी..पुलिस!' अचानक वो लडकी चिल्लाती हुई दौड़कर अंदर आई। मेरी अंगूठी अब की उसकी ऊँगली में थी। मेरी नज़र उसी पर थी।
'आह्ह्ह' मेरे सर दीवार में जा लगा जब उनमे से एक ने बाहर भागते हे मुझे तेजी से धक्का दिया।
उनके जाने के बाद..कपडे झाड़ते हुए मैंने अपना कोट उठाया..सिगरेट की डिब्बी और लाइटर अब भी थे उसमे। मैंने अपनी बची प्रेमिका अर्थात एक सिगरेट को खींचा और होटो में रखा, कोट झाड़ा, लाईटर के पहिये पर अंगूठा चलाया..ये विचित्र था.. लाइटर एक बार में ही जल गया। शायद वह भी मुझे कह रहा था...
"कि मैं तो सुधर गया अब आपकी बारी है।"
मैंने लाइटर की लौ को कुछ पल देखा... फिर मुँह से सिगरेट निकाली और मसल कर फेक दी। जिसका मुझे सबसे अधिक दुःख था वो थी मेरी अंगूठी ..जो जा चुकी थी..या यूँ कहिये की शादी का प्रस्ताव जा चुका था। और उसके बिना सिम्मी शादी के लिए कभी नही मानेगी ये भी मुझे पता था।
'ये क्या है?' उसने मेरी स्प्लेंडर बाइक के लिए कह दिया था 'इस पर नही जाउंगी मैं कोई ढंग की बाइक लाओ'
परंतु आज ये सब नही होता यदि मेरी नियत ठीक होती। थू है ऐसी नियत पर।
'ऑटो!' मैं चिल्लाया जब मैंने रोड पर एक ऑटो को जाते देखा'
'नाईट का डबल किराया लगेगा' ऑटो वाले बताया।
'ये चलेगी?' मैंने घडी खोलकर उसके मुँह के सामने लटकायी।
'बैठो।" घडी ज्यादा महंगी तो नही थी..परंतु शायद ऑटो वाला मेरी हालत और मेरे स्वर के झुकाव से मेरी मजबूरी समझ गया था।
अगली सुबह मैंने सिम्मी के घर निकट के फूल वाले से 800 रुपए का महंगा बुके बनवाया... शादी के प्रस्ताव के लिए।
'ट्रिन-ट्रिन' मैंने तीसरी मंजिल पर स्थित सिम्मी के फ्लैट की घंटी बजाई..और बाल ठीक किये।
सिम्मी ने गेट खोला और चली गयी। सामान्यतः वह गले लगती थी। और किस्सी भी करती थी। चलो मूड खराब होगा किसी बात पर।
'मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ।' मैंने गेट से ही बोल दिया।
'ये चोट कैसे लगी।' सिम्मी ने मेरे माथे पर लगे निशान देखते हुए कहा जब वो पलट के वापस आई। उसका मुख भावरहित था।
'कुछ नही गिर गया था।' सिम्मी ने अर्धमुस्कुराहट दी जब मैंने बताया।
'मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ।' मैंने ज्यादा समय नष्ट न करते हुए बुके दोनों हाथो से सिम्मी के आगे कर दिया और घुटनो पर बैठ गया।
आठ सेकंड देखने के पश्चात सिम्मी मेरे पास आई। माननी तो वो थी नही..ये तो मैं भी जनता था..पर एक कोशिश तो करनी ही थी क्योकि यही उम्मीद थी अब सभी समस्याओ के हल के लिए.
'चटाकककक' सिम्मी के इंकार की उम्मीद तो थी..पर इस जानदार थप्पड़ से इंकार..ये थोडा ज्यादा हो गया था।
'बुके की बजाय ये अंगूठी देते तो शायद मान भी जाती।' सिम्मी एक अंगूठी दिखाते हुए कहा. अरे ये तो.....नही....हाँ...नही...ओह सिट..ये तो वही अंगूठी है..मेरी वाली...
'ये..ये कहा से आई तुम्हारे पास' मैंने अपने हाथ में लेकर अँगूठी की पुष्टि करते हुए पुछा।
'तुम जैसे लोग कभी नही सुधरते' सिम्मी ने अंगूठी वापस झपट ली। 'अंदर आओ. तुम्हे किसी से मिलवाती हूँ।'
जो मेरी आँखों के सामने था उस पर यकीन करना असंभव था..पर था तो यकीन करना पड़ रहा था। वो.. वो दोनों चोर और वो लड़की बैठे चाय पी रहे थे सिम्मी के घर में। तीनो मेरी तरफ देखकर हंस रहे थे।
'मेरे फ्रेंड है ये.. एक्टर है' सिम्मी ने कप में चाय डालते हुए बताया' शादी से पहले ये जानना जरुरी था की तुम सुधरे हो या नही...' सिम्मी कप लेकर मेरी तरफ बढ़ी...
'मेरा ही सेट अप था ये....तेरे जैसे कमीने का पता लगाने के लिए और तू क्या समझता मुझे नही पता की तू मुझसे क्यों शादी करना चाहता है' सिम्मी मेरे मुँह के समक्ष आ चुकी थी।
'छपआक्क्क्क्क्'
'कमीना कहीं का'
'आआह्हह्हह' उसने गरम चाय मेरे मुँह पर डाल दी 'निकल यहां से... आज के बाद अपनी शकल मत दिखा दियो' उसने मुझे धक्का देकर दरवाजा पूरी ताकत से बंद कर लिया। मैं कुछ पल के लिए सन्न खड़ा रह गया.... पता नही..ये हुआ क्या था।..मैंने गलत किया था, परंतु इतना गलत भी नही किया..पर जो भी था गलत तो था ही... मुझे खुद को बदलना होगा शायद..हाँ मैं बदल जाऊंगा अब।
'हेलो माँ' मैंने माँ को फ़ोन लगा लिया। 'इस बार मैं 5000 भेजूंगा..तू अपने एक साडी ले लियो और हाँ फिरोज़ी मत लियो।'
मैंने मकान मालिक से और 5000 रुपए ब्याज पर लेना का इरादा कर लिया था और किसी लड़की को गलत नज़रो न देखने का भी।..क्योकि इसी के कारण मैं बर्बाद हुआ...अब ये सब आदत छोड़ दूंगा। ये विचार करते हुए मैं नीचे आ गया...कि अचानक..
'वाओ.......!!!" मैंने वाओ को फिर बाहर नही आने दिया..जब मैंने सिम्मी के घर के बाहर एक जबरदस्त पटाका लड़की को देखा।

(हितेश कुमार)

******
(इस रचना के सभी अधिकार सुरक्षित हैं)